वो कोई और नहीं तू ही था ख्वाबों में मेरे
रोज आता था तू भूली हुई यादों में मेरे
उम्र को मेरी दो चार घड़ी और बढ़ा देती है
जाने क्या बात है झूठे ही वादों में तेरे
वो जो मुमकिन नहीं मै उसका तलबगार हू क्यू
जिद झलकती है मुहब्बत के इरादों में मेरे
इल्लते-इश्क का मारा हू कुछ रहम तो करो
तमाम उम्र फ़ना कर दिया यादों में तेरे
यकीं नहीं है अगर जा उलट के देख जरा
मिलेंगे मेरे ही ख़त अब भी किताबों में तेरे
वो कोई और नहीं तू ही था ख्वाबों में मेरे
रोज आता था तू भूली हुई यादों में मेरे