Friday, September 9, 2011

ना ही वो इश्क रहा ना ही वो प्यार रहा


ना ही वो इश्क रहा ना ही वो प्यार रहा 
ना ही अब नज़रों में वैसा एतबार रहा 
हर कोई बंद यहा अपनी भूख के जद में 
अब भला किसको यहाँ किसका इंतजार रहा 
कब तलक एक कोई सबकी राह देखेगा 
उसकी भी उम्र हुई वो भी ना जवान रहा 
हम भी एक परवाना थे शमां पे कुर्बान हुए 
फिर कहा शमां पे कुर्बां कोई परवाना हुआ
अब ना वो हम ही रहे और ना वो तुम ही रहे 
फिर  ना  कोई तुम सा या फिर हम सा दीवाना ही हुआ  

इश्क दिल की जुबां अगर होता

इश्क दिल की जुबां अगर होता 
बिन कहे वो समझ गया होता 
मैंने चाहा है  उसको आहों में 
दर्द वो ये समझ गया होता 
प्यार गर बेजुबां नहीं होता 
प्यार के टूटने का डर कभी नहीं होता 
बात नज़रों की समझता कोई 
फिर बिछड़ने का डर नहीं होता 
दिल अगर प्यार में धडकता हो 
फिर कसी जुल्म का दिल पे असर नहीं होता 
गर कभी याद आ गयी उसकी 
फिर तो उस रात का सहर कभी नहीं होता 

जिन्दगी डूब गयी दारू में

जिन्दगी डूब गयी दारू में 
दोस्ती टुट गयी दारू में 
मै चिरागों को जलाता ही रहा 
रौशनी डूब गयी दारू में 
सुन मोहब्बत  का नया राज है ये 
आशिकी डूब गयी दारू में 
आज मै फिर से हो गया तन्हा 
मेरा गम डूब गया दारू में 
वो गया छोड़ के मुझे फिर आज 
मै भी फिर मस्त हुआ दारू में 
अब नया कुछ करूँगा  फिर कैसे 
मैं तो फिर डूब गया दारू में 
आज की रात कटेगी कैसे 
नींद फिर रूठ गयी दारू से 
कल सुबह देखते है फिर यारों 
रात तो बीत गयी दारू में