Saturday, August 14, 2010

तुम हो स्वतंत्र तुम हो स्वतंत्र

हे नव  भारत के  अस्थितंत्र 
तुम हो स्वतंत्र  तुम हो स्वतंत्र
हर विघ्न विनय हो जायेगा 
हर युद्ध विजय हो जायेगा 
अभिमंत्रित कर लो स्वंशक्ति
फूंको उर्जा का अमिट मन्त्र 
तुम हो स्वतंत्र  तुम हो स्वतंत्र
कुछ और नया संधान करो 
अपनी छमता का भान करो
खुद राहें  भी बन जाएँगी
होंगे सब आगे पथ अकंट
तुम हो स्वतंत्र  तुम हो स्वतंत्र
सुध बुध ना भुला देना अपने 
खोकर कुछ इसको पाया है 
ये सुख के दिन कुछ लोगों ने 
अपना सब खोकर पाया है 
कोशिश ये रहे हम लोगों की 
ये रहे हमारी अब अनंत 
तुम हो स्वतंत्र  तुम हो स्वतंत्र
हे इस भारत के  अस्थितंत्र
तुम हो स्वतंत्र  तुम हो स्वतंत्र
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जिंदगी भर

ख़ुशी की रह तकते रह गए हम जिंदगी भर 
ग़मों ने यूँ सताया मेरे दिल को जिंदगी भर 
हमारी असलियत को वो नहीं पहचान पाया 
सफाई पेश करते रह गए हम जिंदगी भर 
नज़र आया ना वो गलियों में मेरी भूल से भी 
पर उसकी रह तकते रह गए हम जिंदगी भर
हम उनसे कह ना पाए हाल दिल का अपने "दीपक"
मगर इक आह भरते रह गए हम जिंदगी भर 

दो घूंट पिलाये

इस बेबसी की आग को किस तरह बुझायें 
कितना हम तुम्हे याद करे कितना भुलाएँ 
इतने निशाने-सितम  दोस्ती  ने  दे  दिए 
किस-किस को छोड़ दे अरे किस-किस को मिटायें
कुछ भी न बचा पास मेरे सब कुछ जल गया 
कुछ गैरों ने फूंके कुछ अपनों ने जलाये 
ये वक़्त आखिरी है और प्यास भी बहुत है 
नफरत से ही सही कोई दो घूंट पिलाये  

उसी के नाम से

लगने लगा है डर अब आशिकी के नाम से
दिल भर गया है अब तो दोस्ती के नाम से 
यूँ इक सवाल बन गयी खुद मेरी जिंदगी 
दिल भर गया है अब तो जीने के नाम से
दिल पर मेरे हालत जो आकर गुजर गए 
उनको सुना रहा हूँ  बेबसी के नाम से
इतनी पिला दी उसने और इतना बहक गए 
डर लगने लगा है अब तो मयकशी के नाम से 
गुमनाम जबसे वो हुआ गुमनाम हम हुए 
पहचान थी तो मेरी बस उसी के नाम से

तू मेरे आँगन में आ बन जा एक प्यारी तुलसी की डाली

तू मेरे आँगन में आ बन जा
एक प्यारी तुलसी की डाली
मै तुम्हे पूजूं तू मुझे पूजे
हो एक प्रेम की रिति निराली
जब भी सुबह हो मै तुम्हे देखूं
बिखरे जब सूरज की लाली
जब जब आये ऋतू सावन की
पिया मिलन ऋतू मनभावन सी
तुम बन जाना मेरा उपवन
मै बन जाऊंगा एक माली
तू मेरे आँगन में आ बन जा
एक प्यारी तुलसी की डाली
जब जब आये ऋतू बारिश की
रिम-झिम रिम-झिम ऋतू बारिश की
मै बन जाऊ बरखा बादल
तुम बन जाना एक हरियाली
तू मेरे आँगन में आ बन जा
एक प्यारी तुलसी की डाली
जब ऋतू आये फुल खिलन की
बढ़ जाये शोभा उपवन की
मै बन जाऊंगा एक भौरा
तुम बन जन बेल की डाली
तू मेरे आँगन में आ बन जा
एक प्यारी तुलसी की डाली
जब आए ऋतू गर्म हवा की
गर्मी और बेदर्द हवा की
मै बन जाऊंगा एक छाया
तुम बन जाना पेड़ की डाली
तू मेरे आँगन में आ बन जा
एक प्यारी तुलसी की डाली
मै तुम्हे पूजूं तू मुझे पूजे
हो एक प्रेम की रिति निराली

इधर भी हैं उधर भी हैं

बिखरे-बिखरे ख़यालात इधर भी हैं उधर भी हैं
ये बेबसी के हालत इधर भी हैं उधर भी हैं
ये अलग बात है की आँखें सुख चली है अपनी
पर आंसुओं की बरसात इधर भी हैं उधर भी हैं
ये चार दिन के उजाले सिर्फ देखने को है
फिर गम की कलि रात इधर भी है उधर भी है
ऐसा नहीं की बिछड़ने का गम सिर्फ तुम्हे है "दीपक"
कुछ गमे-जज्बात इधर भी है उधर भी है

उम्र भर

हमको तेरी बेरुखी का गम रहेगा उम्र भर
दर्द जितना भी मिलेगा कम रहेगा उम्र भर
फिर न बरसे जोर से घिर के घटायें अश्क की
आंख का कोना हमारे नम रहेगा उम्र भर
हैं अगर जिन्दा तो समझो एक जिन्दा लाश हैं
जिंदगी में मौत का मौसम रहेगा उम्र भर

जीवन एक अनंत धरातल

जीवन एक अनंत धरातल
हम है इसका एक छोटा तल
कभी है अवतल कभी है उत्तल
कभी अभिन्न इसी सा समतल
जीवन एक अनंत धरातल
कभी बहुत आनंद समेटे
कभी दर्द की आहट लेके
आता जाता आज और कल
जीवन एक अनंत धरातल
जो बिक जाये दाम उसीका
झूठा जो है नाम उसीका
जो न बिका बेकार है यहाँ
मिथ्या सब संसार है यहाँ
क्या ये सूखे सूखे उपवन
क्या ये बहती नदिया कल-कल
जीवन एक अनंत धरातल
जीवन एक अनंत धरातल

तुमसे सिकवा नहीं गिला भी नहीं

तुमसे सिकवा नहीं गिला भी नहीं
अब आँखों में अश्को का काफिला भी नहीं
भूलना चाहते तो भूल भी गए होते
पर तेरे जैसा कोई हमसफ़र मिला भी नहीं
चाँद सूरज न सितारे न चांदनी कोई
अब तो रिश्तो का सिलसिला भी नहीं
दोस्ती किससे और कैसे करे
फिर से जखम खाने का हौसला भी नहीं