Saturday, August 14, 2010

जीवन एक अनंत धरातल

जीवन एक अनंत धरातल
हम है इसका एक छोटा तल
कभी है अवतल कभी है उत्तल
कभी अभिन्न इसी सा समतल
जीवन एक अनंत धरातल
कभी बहुत आनंद समेटे
कभी दर्द की आहट लेके
आता जाता आज और कल
जीवन एक अनंत धरातल
जो बिक जाये दाम उसीका
झूठा जो है नाम उसीका
जो न बिका बेकार है यहाँ
मिथ्या सब संसार है यहाँ
क्या ये सूखे सूखे उपवन
क्या ये बहती नदिया कल-कल
जीवन एक अनंत धरातल
जीवन एक अनंत धरातल

3 comments:

  1. avtal or uttat ko bahut hi acche se paribhashit kiya hai aapne, kya baat hai :)

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  2. Nice One.I'm not yet a writer but still i want to write something, like in this poem there shuld be some aur dard regarding jeevan. Like "Jeevan ke marmo main ek pighalti chanv bahut hai, jeene ke iis chah main lekin ek dupahri aag bahut hai".

    Alok

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  3. हमे आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी! कवी का जीवन का प्रति नज़रिया वास्तविकता के बहुत नज़दीक जान पड़ता है!!!

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