मै उसकी आँख से घायल हूँ ऐसा लोग कहते है
वो कहता है मेरे चर्चे उसे बदनाम कर देंगे
मगर मै तो नहीं कहता हू ऐसा लोग कहते है
हिचकता है, झिझकता है, सिमटता है ,बिखरता है
मुझे जब देखता है वो तो आहें सर्द भरता है
मचलता है वो जब तक दूर है तो पास आने को
मगर जब पास आता है तो शर्मा कर गुजरता है
सिकंदर हैं बहुत दुनिया में पर मुझसा नहीं कोई
दीवाने हैं तेरे लाखो मगर मुझसा नहीं कोई
बहुत होंगे तुम्हारे प्यार में मरने की चाहत में
तुम्हारे प्यार से जिन्दा हू मै मुझसा नहीं कोई
जो चेहरे से नहीं छुपता उसे कैसे छुपाऊ मै
जो बस दिल ही समझता है उसे कैसे बताऊ मै
उसे जिद है की मै इजहार उससे क्यों नही करता
जो है दिल से बयां उसको लबों तक कैसे लाऊ मैं
वो चाहे फिर मुझे यारो यही है आरज़ू मेरी
वो लौटे मेरी राहों में यही है आरज़ू मेरी
मुझे चाहत ना तारो की, नजारो की ना फूलों की
वो बस अपना कहे मुझको यही है आरज़ू मेरी
जरा सी बात पर मुझसे बिगड़ता रूठता है वो
खुद अपने आप से लड़ कर बिखरता टूटता है वो
कभी जब सामने आऊं तो नज़रें फेर लेता है
जरा ओझल हुआ तो बस मुझी को ढूढ़ता है वो
किया है फिर हवा ने बदमिज़ाजी बाग़ से देखो
की हर फूलों का चेहरा लाल है अब बाग़ में देखो
जला है आज परवाना ना जाने खता किसकी
मोहब्बत कर रहा था वो शमां की आग से देखो
निकलना चाहता था मै मगर फंसता रहा यारों
मै नंगे पांव जलती आग पर चलता रहा यारों
उसे अपना बनाने का जुनूं कुछ मुझपे ऐसा था
सितम करता रहा वो और मै हँसता रहा यारों
मै उसके प्यार में पागल नहीं होता तो क्या होता
मुझे पागल बनाने का कोई जरिया नया होता
किया है वक़्त ने साजिश मेरी चाहत की राहो में वरना
ना वो तन्हा हुआ होता ना मै तन्हा हुआ होता
हिचकता है, झिझकता है, सिमटता है ,बिखरता है
मुझे जब देखता है वो तो आहें सर्द भरता है
मचलता है वो जब तक दूर है तो पास आने को
मगर जब पास आता है तो शर्मा कर गुजरता है
सिकंदर हैं बहुत दुनिया में पर मुझसा नहीं कोई
दीवाने हैं तेरे लाखो मगर मुझसा नहीं कोई
बहुत होंगे तुम्हारे प्यार में मरने की चाहत में
तुम्हारे प्यार से जिन्दा हू मै मुझसा नहीं कोई
जो चेहरे से नहीं छुपता उसे कैसे छुपाऊ मै
जो बस दिल ही समझता है उसे कैसे बताऊ मै
उसे जिद है की मै इजहार उससे क्यों नही करता
जो है दिल से बयां उसको लबों तक कैसे लाऊ मैं
वो चाहे फिर मुझे यारो यही है आरज़ू मेरी
वो लौटे मेरी राहों में यही है आरज़ू मेरी
मुझे चाहत ना तारो की, नजारो की ना फूलों की
वो बस अपना कहे मुझको यही है आरज़ू मेरी
जरा सी बात पर मुझसे बिगड़ता रूठता है वो
खुद अपने आप से लड़ कर बिखरता टूटता है वो
कभी जब सामने आऊं तो नज़रें फेर लेता है
जरा ओझल हुआ तो बस मुझी को ढूढ़ता है वो
किया है फिर हवा ने बदमिज़ाजी बाग़ से देखो
की हर फूलों का चेहरा लाल है अब बाग़ में देखो
जला है आज परवाना ना जाने खता किसकी
मोहब्बत कर रहा था वो शमां की आग से देखो
निकलना चाहता था मै मगर फंसता रहा यारों
मै नंगे पांव जलती आग पर चलता रहा यारों
उसे अपना बनाने का जुनूं कुछ मुझपे ऐसा था
सितम करता रहा वो और मै हँसता रहा यारों
मै उसके प्यार में पागल नहीं होता तो क्या होता
मुझे पागल बनाने का कोई जरिया नया होता
किया है वक़्त ने साजिश मेरी चाहत की राहो में वरना
ना वो तन्हा हुआ होता ना मै तन्हा हुआ होता
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteसंजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
किया है फिर हवा ने बदमिज़ाजी बाग़ से देखो
ReplyDeleteकी हर फूलों का चेहरा लाल है अब बाग़ में देखो
जला है आज परवाना ना जाने खता किसकी
मोहब्बत कर रहा था वो शमां की आग से देखो
sundar panktiyan !
its very nice poem..
ReplyDeleteजरा सी बात पर मुझसे बिगड़ता रूठता है वो
खुद अपने आप से लड़ कर बिखरता टूटता है वो
कभी जब सामने आऊं तो नज़रें फेर लेता है
जरा ओझल हुआ तो बस मुझी को ढूढ़ता है वो ..