Tuesday, October 12, 2010

उसके होंठों पे जब मेरा नाम आ रहा था

उसके होंठों पे जब मेरा नाम आ रहा था
जाने किस कशमकश में वो घबरा रहा था
आइना सामने था हकीकत का फिर भी
वो अपनी हकीकत को झुठला रहा था
चौंकता था की जैसे छुआ हो किसी ने
पर वो खुद के ही साये से टकरा रहा था
साफ जाहिर था  रंगे-मुहब्बत नज़र से
फिर भी होंठो पे लाने से शरमा रहा था

3 comments:

  1. mast yaar.............

    Chumeshwari bhri...............????


    i like ittttttttttttt

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  2. मुहोब्बत छुपाये नहीं छुपती.

    अच्छा लिखा है.

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  3. good

    At the touch of love, everyone becomes a poet.

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