एक मै था जो समय के शाप से टकरा गया
एक वो था जो समय के ताप से घबरा गया
जो भी कल की चीख थी सन्नाटा बन कर रह गयी
हर वय्था अब अश्रु कण की धार बन कर बह गयी
अब न कोइ वेदना सम्वेद्ना बाकी रही
मै उबल कर खुद समय के घात से टकरा गया
जब भी चीखा जोर से आवाज वापस आ मीली
फ़िर लगा जैसे तिमिर मे खुद से ही टकरा गया
रात सारी ओस की चादर पसारे रह गयी
मै तिमिर भर इस धरा का ताप सहता रह गया
एक मै था जो समय के शाप से टकरा गया
एक वो था जो समय के ताप से घबरा गया
:ज्ञान दीपक दुबे
sir you are a writer..... i didn't knew that.... gr88 lines....!!
ReplyDeleteVery nice...keep it up!!!
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