Saturday, December 3, 2011

एक मै था जो समय के शाप से टकरा गया


एक मै था जो समय के शाप से टकरा गया
एक वो था जो समय के ताप से घबरा गया

जो भी कल की चीख थी सन्नाटा बन कर रह गयी
हर वय्था अब अश्रु कण की धार बन कर बह गयी

अब न कोइ वेदना सम्वेद्ना बाकी रही
मै उबल कर खुद समय के घात से टकरा गया

जब भी चीखा जोर से आवाज वापस आ मीली
फ़िर लगा जैसे तिमिर मे खुद से ही टकरा गया

रात सारी ओस की चादर पसारे रह गयी
मै तिमिर भर इस धरा का ताप सहता रह गया

एक मै था जो समय के शाप से टकरा गया
एक वो था जो समय के ताप से घबरा गया


                                     :ज्ञान दीपक दुबे 

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